About Us

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कार्मेल उच्च स्कूल, बोकारो थर्मल की स्थापना 7 जनवरी, 1955 को D.V.C के निमंत्रण पर की गई थी। यह छात्रों को झारखण्ड माध्यमिक शिक्षा परिषद, (J.A.C) रांची के लिए तैयार करता है। यह हजारीबाग के रोमन कैथोलिक बिशप के धार्मिक क्षेत्राधिकार में है। शिक्षा का माध्यम हिंदी है। पाठ्यक्रम में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह विद्यालय रोमल कैथोलिक धर्म बहनों द्वारा संचालित सभी जातियों और पंथों की लड़कियों और लड़कों के लिए खुला है। विद्यालय का उद्देश्य कैथोलिक समुदाय को एक सर्वांगीण गठन देना है, लेकिन अन्य समुदायों के सदस्यों के लिए अपनी सेवाएं प्रदान करता है, जाति और पंथ के बावजूद, उन्हें जीवन में अपनी भूमिका को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए वास्तव में एकीकृत व्यक्तित्व के रूप में सक्षम बनाता है |

  • परमेश्वर में अटल विश्वास
  • सत्यवादिता
  • श्रम की गरिमा
  • कठोर परिश्रम
  • जीवन का सम्मान करना

हमारा उद्देश्य

           उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम निम्नलिखित मान्यताओं ; बिन्दुओं को आत्मसात करेंगे।
  • जीवन प्रोत्साहन जैसे मूल्यों को नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा द्वारा तथा ईश्वर ही उनकी आस्था एवं जीवन स्रोत है जैसे मूल्यों पर जोर देंगे।
  • राष्ट्रीय एवं अर्न्त राष्ट्रीय स्तर के मापदण्डों पर बच्चों को शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराना।
  • विद्यालय मंत्रिमंडल NCC or NS बालक बालिकाओं को गाइड स्काउटस जैसे अन्य संस्थाओं में किशोर अवस्था में ही छात्र छात्राओं में नेतृत्व के सद्गुणों का प्रादुर्भाव और उन्हें पोषित कराना।
  • राष्ट्रीय अखण्डताए, एकता देशभक्ति और धर्मनिरपेक्षता जैसे भावनाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए धार्मिक प्रार्थना एवं राष्ट्रीय पर्वों को संयुक्त रूप से मनाने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना।
  • पर्यावरण सन्तुलन प्राकृतिक धरोहर का संरक्षण पर्यावरण संस्थाओं / संगठनों से संयुक्त होकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाना।
  • खेलकूद स्पर्धा द्वारा वव्यक्तित्व निखार के अवसर और संसाधनों को उपलब्ध कराना।
  • गरीबों को उच्च शिक्षा के योग्य बनाकर उन्हें शिक्षा का अवसर प्रदान करना।
  • अपने सहकर्मियों एवं सहयोगियों को संस्था के उद्देश्यों एवं लक्ष्य के प्रति जागरूक बनाना और कार्यान्वयन में (प्रतिपादन में आमंत्रित) शामिल एवं प्रोत्साहित करना।
  • विधार्थियों के माता-पिता अभिभावक गण जब अपने पुत्र / पुत्रियों को हमारे देख-रेख के लिए सुपुर्द करते हैं तो उनका सहयोग, इन विद्यार्थियों को समाज के लिए सफल एवं सार्थक बनाने में सहयोगी होने के लिए भी आह्वान करना।